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Tuesday, July 13, 2021

Utterances of the Mehbooba Mufti: Love of the Kashmir based parties for the sympathizers of the Terrorism

 


Two days ago J&K Govt sacked eleven employees  for terror links. Among those dismissed are two sons of Hizbul Mujahideen founder Syed Salahudin.The sources said that the designated committee in Jammu and Kashmir for scrutinizing and recommending cases, in its second and fourth meeting, recommended three and eight cases respectively for dismissal from the government service. The recommendations for dismissal were made by the committee under the relevant provisions of the Constitution. The government sources said that three officials recommended for dismissal in the second meeting of the committee include an Orderly of ITI Kupwara' who was an overground worker of terror outfit Lashkar-e-Toiba. He was providing information to the terrorists about the movement of security forces and abetting and harbouring terrorists to carry out activities in a clandestine manner. Two teachers from Anantnag District have been found involved in anti-national activities including participating, supporting and propagating the secessionist ideology of Jamat-Islami (JeI) and Dukhtaran-e-Millat (DeM). The other eight government employees dismissed include two constables of Jammu Kashmir Police who have supported terrorism from within the police department and provided inside information to the terrorists as also logistic support. Sons of most wanted terrorist and Hizbul Mujahideen founder Syed Salahudin has also been dismissed. His sons Syed Ahmad Shakeel and Shahid Yousuf were also involved in terror funding. The NIA tracked terror funding trials of both persons and they have been found involved in raising, receiving, collecting, and transferring funds through Hawala Transactions for terror activities of Hizbul Mujahideen. Another government employee with terror link is an Orderly of the Health Department. He is an overground worker of HM and has a history of direct involvement in terrorist activities. Two dreaded terrorists were harboured by him at his residence. Beisdes these two employees of the Education Department have been terminated who were actively involved in furthering the secessionist agenda unleashed by the sponsors from Pakistan and are Jamat-e-Islami ideologists. Shaheen Ahmad Lone, an Inspector of the Power Department, has been found involved in smuggling and transporting arms for Hizbul Mujahideen. Out of these employees, four were working in the Education Department, two in Jammu Kashmir Police and one each in Agriculture, Skill Development, Power, SKIMS and Health Departments. If we have a close look at this, we found, all of them were involved in terrorism directly or indirectly and deserved punishment. LG administraton by invoking Article 311 of the constitution ( Under the Interest of the Security of the State ) dismissed them. But the thing that make us ponder is the uttereances of the former CM & PDP President Mehbooba Mufti in which on Sunday she said the dismissal of eleven government employees on flimsy grounds was criminal and the Centre continues disempowering the people of Jammu and Kashmir in the garb of pseudo nationalism by trampling the Constitution. While making these utterances she completely ignored the charges against them. It shows the love of the separatists parties for the workers or sympathizers of the terrorism. What she has to do, when she was in power corridors, if it is done by the pressent administration, she has to shower praise for this but she is doing vice e versa. Afterall to punish the culprits is the job of the administration. It also shows the hidden agenda of these separatists that is, continuing of the Millitancy is in favour of these parties bacuase it is the NECTAR for their political survival.

Monday, June 28, 2021

आंतकवादियों की बदलती रणनीति और ड्रोन जैसे डिवाइस


 कल ही जम्मू में एक आंतकवादी का पकड़ा जाना और उससे 5 किलो की आईडी का बरामद होना इसके अलावा जम्मू एयरपोर्ट पर दो विस्फोट होना, इन सब चीजों ने एकदम से जम्मू के लोगों को हैरत और डर के माहौल में डाल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी जी की सर्वदलीय बैठक के बाद जिसमें जम्मू कश्मीर के 14 दलों ने हिस्सा लिया था पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ गई है और उनकी हर कोशिश है कि किस तरह से एक खुशगवार माहौल जो जम्मू कश्मीर में बन रहा है उसको इस तरह से एकदम बदला जाए कि लोगों में से से दहशतगर्दी का डर जो है वह अंदर तक बैठ जाए। आईडीके मिलने और दो विस्फोटों के बाद जम्मू-कश्मीर के डीजीपी श्री दिलबाग सिंह जी द्वारा यह बयान देना कि इन विस्फोटों में जो कि एक लो इंटेंसिटी विस्फोट हैं, इसमें पेलोड को लाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है यह हमें दिखाता है कि किस तरह से आंतकवादी अब अपनी टैक्टिक्स गतिविधियो को बदल रहे हैं। बॉर्डर पर बढ़ती हुई विजिलेंस और इन्फ्रास्ट्रक्चर ने अब इन लोगों की वहां से हथियार एक्सपोर्ट करने की जो कोशिश है उस पर अंकुश लगा दिया है तो अब उनका इस तरह की टैक्टिक्स पर ज्यादा ध्यान दिया है कि तरह से उससे लोगों में एक डर का माहौल पैदा किया जाए। ड्रोन एक छोटा डिवाइस है और वह ज्यादा बढ़ा पेलोड जब या बड़ी इंटेंसिटी का पेलोड नहीं लेकर जा सकता। जैसा कि हमने जम्मू एयरपोर्ट में देखा वहां यह दो विस्फोट हुए, उनमें से एक टेक्निकल एरिया में हुआ और दूसरा खुले क्षेत्र में हुआ और इनमें कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन ड्रोन जैसे डिवाइस से, जो कि एक बहुत ही नीची उड़ान भरता है और रडार की पकड़ में नहीं आ सकता हालांकि ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता, लेकिन एक डर का माहौल जरूर बन जाता है। तो इससे हमें यह भी एक समझ मिलती है कि अब जम्मू कश्मीर में मिलिटेंसी का तकरीबन सफाया होने के बाद अब आंतकवादी किस तरह से अपनी टैक्टिक्स को बदल रहे हैं। जो भी हो अब हमारी सुरक्षा एजेंसियों को नए तौर-तरीके अपनाने होंगे जिससे ड्रोन जैसे डिवाइस हैं इनसे कोई बड़ी हानि ना हो सके। जैसे कि अगर यह विस्फोट एयरपोर्ट पर खड़े किसी विमान के ऊपर होता तो काफी जानी माल का नुकसान हो सकता था। हालांकि अगर     ड्रोन को रिमोट से कंट्रोल किया जाए तो उसकी जो रेंज है वह बहुत कम होती है और अगर उसको ज्यादा दूर भेजना हो तो उसमें इन जीपीएस के कोऑर्डिनेटस सेट किए जाते हैं तो वहां जाकर वह अपना काम कर सकता है। इससे अब सुरक्षा एजेंसियों को यह भी समझ लेना चाहिए कि जो हमारी महत्वपूर्ण इंस्टॉलेशंस हैं, जम्मू एयरपोर्ट या सेना के महत्वपूर्ण ठिकाने, उनमें जीपीएस जैमर लगाए जाएं जिससे यह ड्रोन वहां पर पहुंची ना सके। इसके अलावा और भी भारत सरकार को बड़े लेवल पर काम करते हुए और कदम उठाने चाहिए कि यह ड्रोन इस तरह के काम करने में सक्षम ही ना हो, उनकी प्रोग्रामिंग भी इस तरह से हो कि वह महत्वपूर्ण इंस्टॉलेशन तक ना जा सके। इसलिए अगर भारत सरकार इसके बारे में बड़े कदम नहीं उठाती है तो निश्चित ही आने वाले समय में ड्रोन  जैसे डिवाइस का फायदा उठाकर आंतकवादी किसी बड़े कारनामे को अंजाम देने में कामयाब हो सकते हैं।

Thursday, June 10, 2021

क्या जम्मू को अलग स्टेट का दर्जा मिल मिल सकता है!!!


पिछले लेख में भी हमने जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी के विभाजन का जो मुद्दा उठ रहा था और जैसा दिखाया जा रहा था कि जम्मू को अलग स्टेट का दर्जा मिल मिल सकता है उसके बारे में लिखा था और बताया था की जैसा कि इस तरह का अभी कुछ होने वाला नहीं है और प्रधानमंत्री के संबोधन के बारे में में जो क्यास लगाए जा रहे थे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके बारे में कुछ बोल सकते हैं वैसा कुछ नहीं हुआ। 

   लेकिन इन सब अफवाहों के बीच पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) के नेताओं की 9 जून को श्रीनगर में मुलाकात ने इन सब अटकलों को और तूल दे दिया है। गठबंधन नेताओं की बेचैनी साफ झलक रही थी। गठबंधन नेताओं ने कहा कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने के संघर्ष में सभी विकल्प खुले रख रहे हैं। “हमने कोई विकल्प बंद नहीं किया है। जब केंद्र सरकार हमें आमंत्रित करेगी तो हम इस पर चर्चा करेंगे, ”पीएजीडी के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा। सोशल मीडिया पर उठती अफवाहों और लगाए जा रहे क्यासों के बारे में फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि पीएजीडी नेता भी इसके बारे में उतना ही जानते हैं जितना बाकी लोग।

कश्मीर में पिछले काफी दिनों से से अफवाहें फैली हुई हैं कि जम्मू और कश्मीर यू.टी. को विभाजित करके , जम्मू क्षेत्र को राज्य का दर्जा दिया जा सकता है जबकि कश्मीर को सीधे नई दिल्ली द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। अगर देखा जाए तो इस प्रकार का कोई कदम उठाने में केंद्र सरकार पूरी तरह से सक्षम है और इसमें डीलिमिटेशन जैसा मुद्दा भी कोई असर नहीं डाल सकता जो कि अविभाजित जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी का बैलेंस रखने के लिए एक जरूरी चीज है। जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की आवाजाही बढ़ने और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की जल्दबाजी में नई दिल्ली की यात्रा के बाद इन अफवाहों ने तूल पकड़ा था।

इस तरह की अफवाहों की सत्यता का पता लगाना लगभग असंभव है, लेकिन पीएजीडी की 6 महीने बाद हुई ताजा बैठक इस बात की ओर इशारा करती है कि "धुआं वही से निकलता है जहां आग लगी होती है"



Tuesday, June 8, 2021

बाबा धनसर का पवित्र स्थान


 बाबा धनसर का पवित्र स्थान भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के रियासी जिले में रियासी से कटरा की ओर 17 किमी दूर करुआ गांव के पास करुआ झील (तालाब) में स्थित है।



यहां तक पहुंचने में सड़क से 200 मीटर की पैदल दूरी शामिल है और काफी सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव पार्वती को अपनी अमरता की कहानी बताने के लिए अमरनाथ गुफा में गए, तो उन्होंने अपने नाग राजा शेषनाग को अनंतनाग में छोड़ दिया। शेष नाग मानव रूप में वासुदेव के रूप में आए। वासुदेव के पुत्रों में से एक धनसर था जो एक संत व्यक्ति था। यहां पर पहुंचने पर आपका मन एक अजीब तरह के खुशी, उल्लास और शांति से भर जाता है बाबा धनसर का यह स्थल देखने में बहुत ही खूबसूरत और मनोरम है। पानी की छोटी सी झील ऐसे लगती है जैसे स्फटिक में से प्रकाश निकल रहा हो। अगर आप कभी रियासी जाएं तो इस जगह पर जरूर जाएं



Wednesday, May 26, 2021

Is inquiry going on against many terrorist-friendly government employees, including officers in J&K???


The erstwhile state of Jammu & Kashmir was a terrorism infested state and there is no doubt that many government employees and others were the overground workers or the sympathizers of militancy. Even the governments of that times  although they knew each and everything but they did not take any steps to stop this or you can say overlooked this. Although in some case of some FIRs registered against them and even PSA was slapped against some of these but these were the only half hearted measures as nothing concrete was done against these thereby making them more vulnerable.  With the abrogation of article 370 and 35 A and becoming of state into Union Territory of Jammu and Kashmir and Ladakh, the situation is drastically changed and since then the scrutiny is going on of all these employees who have some dark shades in their character. From the last two three months, we saw some of them were dismissed and in the interest of security of the state. Davinder Singh Deputy SP of the police and two teachers I
drees Jan are some of the person  dismissed by the LG administration inciting special clause of article 311 of the Constitution of India in which even there is no need of enquiry. Now the question is the how many of the Government employees, who were the sympathizes of terrorism and against whom, the enquiry is going on. If we believe on sources, there are more than 500 employees in the various departments of the union territory against which enquiry is going on and there is a fear among these that the noose is getting tighter against their necks and they will be dismissed at any time from their service.  There should be fear of laws of the land in the citizens of every nation and if it is not then there will be total chaos. How can a person who has 2-3 FIRs on his name and double time slapped PSA, was still doing his job is the question that ponders in the mind of each and every and citizen. Now with the dismissal of services of these employees, the Govt has given a clear cut signal that no one will be spared if the case is in the interest of the Security of the State.

जम्मू-कश्मीर की नौकरशाही में जल्द ही बदलाव की उम्मीद

 


जम्मू-कश्मीर की नौकरशाही में बदलाव जल्द ही  बदलाव की उम्मीद है। सूत्रों की माने आगे तो यह बदलाव अगले 24 घंटे में हो सकता है। मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम को बदला जा सकता है

Sunday, May 23, 2021

आखिर कब खत्म होगा जम्मू से भेदभाव???


 जम्मू वासियों की तरफ से अक्सर ही डिस्क्रिमिनेशन/ भेदभाव का मुद्दा उठता ही रहता है अक्सर बात यह होती है कि हर किसी मसले में चाहे वह नौकरियों का मसला हो फंड्स का मसला हो या और कोई विकास का मसला हो जम्मू किते खींचते खेते के साथ भेदभाव किया जाता है अभी पिछले ही दिनों हमने यह देखा था कि जो राज्यपाल महोदय ने जो पैसा J&K रिलीफ के तौर पर कोविड-19 समय में बांटा था यह पैसा जो कि खच्चर वालों, पिट्ठू वालों और टूरिस्ट गाइड के लिए था। इस पूरे 3 करोड के लोगों की राशि में जम्मू वालों के ही तो खाते में सिर्फ एक लाख 68 हजार के लगभग पैसा आया थ। अब दूसरा नवीनतम उदाहरण हमें देखने को मिला है कोविड-19 अस्पताल  जम्मू में जो कि डीआरडीओ के साथ मिलकर बन रहा है, में नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए। गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज जम्मू और एसोसिएटेड हॉस्पिटल की तरफ से ये एडवर्टाइजमेंट निकली है में यह साफ तौर पर लिखा है उसमें j&k यूनियन टेरिटरी का कोई भी व्यक्ति, जिसके पास जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी का डोमिसाइल सर्टिफिकेट हो, उसमें अप्लाई कर सकता है। और ऐसा ही जो 500 बेड की केपेसिटी बाला कोविड-19 श्रीनगर में बन रहा है, वहां उन्होंने लिखा है कि सिर्फ कश्मीर का रहने वाला व्यक्ति ही इसमें आवेदन कर सकता है। तो एक ही यूनियन टेरिटरी में जो अलग-अलग तरह के कायदे कानून यह सिद्ध करते हैं कि जम्मू वालों के साथ भेदभाव अभी भी जारी है। अगर जम्मू में कोविड-19 अस्पताल बन रहा है तो उसमें कोई भी अप्लाई कर सकता है अगर ऐसा ही अस्पताल श्रीनगर में बन रहा है तो उसमें सिर्फ श्रीनगर कश्मीर डिवीजन का व्यक्ति ही आवेदन कर सकता है। तो यह भेदभाव का यह ताजातरीन उदाहरण इस वक्त सोशल मीडिया में चर्चा में है हम राज्यपाल महोदय से यही विनती करना चाहेंगे कि जम्मू वासियों के साथ जो भी भेदभाव पिछले कई दशकों के साथ होता आया है उसको अब खत्म होना चाहिए। जम्मू वासियों को अब एक यह महसूस होना चाहिए कि राज्यपाल महोदय के होते हुए वह पूरी तरह से सुरक्षित हैं। उनके हक इस गवर्मेंट के होते बिल्कुल सुरक्षित हैं जहां कोई यह भी बात कर सकता है कि जम्मू में जो वैकेंसी निकली है वह ज्यादा है लेकिन बात सिर्फ वैकेंसीज कि नहीं, वैकेंसी चाहे एक हो दो हो चाहे 20 हो। बात है कि अगर जम्मू डिवीजन में एक अस्पताल बनता है तो उसमें  यही होना चाहिए कि उसमें जम्मू डिवीजन का ही व्यक्ति उसमें आवेदन कर सकता है और अगर कश्मीर के लिए निकलता है तो उसमें कश्मीर का ही आवेदन कर सकता है। या दोनों में यह पैमाना होना चाहिए कि जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी का कोई भी व्यक्ति इन दोनों अस्पतालों में आवेदन कर सकता है।

Monday, May 10, 2021

करोना से हो रही मौतें। आखिरकार हम कब समझदार होंगे

 


पिछले कई दिनों से हम देख रहे हैं कि करोना से हमारी J&K यूनियन टेरिटरी में काफी लोगों की मौतें हो रही हैं। पिछले कल भी जम्मू कश्मीर  में एक बड़ा ही खौफनाक दिन था। जम्मू कश्मीर  में 60 लोग करोना की भेंट चढ़ गए इनमें से 16 लोगों की मौत गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज जम्मू में हुई। सबसे बड़ी बात यह है ज्यादातर मामलों में पीछे का एक बड़ा कारण जो सामने आ रहा है वह यह है कि इनमें से कुछ लोग उस वक्त अस्पताल में पहुंचे। जब कि डॉक्टरों के पास उनको उनको बचाने के लिए कुछ नहीं था। कहने का मतलब यह है कि उस समय अस्पताल में आए जबकि करोना उनके शरीर में पूरी तरह से फैल चुका था और उनके लंगस् तकरीबन जवाब दे चुके थे। इस बात को लेकर उनके साथ आए अटेंडेंस की डॉक्टरों के साथ वहां पर मारपीट भी हुई और डॉक्टरों की तरफ से इसमें पुलिस स्टेशन एक रिपोर्ट भी की गई। अब सबसे बड़ी बात जो सामने आती है कि ऐसा क्या है कि लोग जब बिल्कुल ही करोना के सामने घुटने टेक जाते हैं उस वक्त अस्पताल में जाते जब उनकी जिंदगी को बचाना असंभव सा होता है। हम हमेशा देखते हैं कि बार-बार प्रशासन द्वारा यह अपील करने के बावजूद भी अगर किसी को करोना हुआ है और ऑक्सीजन लेवल ड्रॉप हो रहा है तो उसको फौरन अस्पताल पहुंचना चाहिए। लेकिन अक्सर देखने में भी आता है कि लोग अस्पताल उस वक्त पहुंचते हैं जब उनका अक्सीजन लेवल बिल्कुल ही ड्रॉप हो जाता है और हालात काबू से बाहर हो जाते हैं। उस वक्त डॉक्टरों का उनको बचाना असंभव ही होता है और ऊपर से डॉक्टरों के साथ उनका बहस करना और लड़ाई करना। करोना के इस समय में अगर जो सबसे ज्यादा मुसीबत में और सबसे ज्यादा खतरा मोल के काम कर रहे हैं तो वह डॉक्टर ही हैं। डॉक्टर जब एक अथक प्रयास करके अपने मरीजों को बचाने की कोशिश करते हैं लेकिन जैसा कि बाद में 1 न्यूज़ चैनल से बात करते हुए डॉक्टर ने बताया कि आखिर वह क्या वजह है कि लोग इतनी मौतें अस्पताल में होती हैं तो उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि लोग करोना प्रोटोकॉल को फॉलो नहीं करते हैं वह अक्सर उस वक्त अस्पताल में पहुंचते हैं जब हालात काबू से बाहर होते हैं और उनका ऑक्सीजन लेवल बिल्कुल ही 50 पर होता है उस वक्त उन को बचाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि उनका शरीर ट्रीटमेंट को सपोर्ट नहीं करता है। दूसरा उन्होंने यह बताया कि इस वक्त अगर एक इस वक्त जम्मू गवर्मेंट कॉलेज मेडिकल कॉलेज में एक मरीज के पीछे तकरीबन तीन से चार अटेंडेंट हॉस्पिटल में है हालांकि कोविड का यह प्रोटोकॉल यह नहीं चाहता कि यह अटेंडेंट वहां पर हो। लेकिन यह अटेंडेंट वहां पर होते हैं और यह सारे अटेंडेंट वहां पर घूमते हैं, कैंटीन में जाते हैं, कहीं दवाई की दुकान पर जाते हैं और पूरे मेडिकल कॉलेज में  घूमते हैं और इस तरह से यह करोना का और बढ़ावा दे रहे हैं। बार-बार प्रशासन से अपील करने के बावजूद भी यहां पर पैरामिलिट्री फोर्स नहीं लगाई गई है। इस तरह से कोविड-19  कंट्रोल करना बहुत मुश्किल है। तो इन सब चीजों के सुनने बाद हमारा यह मानना है कि जो लोग हैं उनको एक समझदारी का परिचय देना चाहिए। अगर एक पेशेंट के साथ एक ही अटेंडेंट जाए और जैसा कि डॉक्टर निर्देश दें उनका वह पालन करें तो बहुत हद तक उस रोगी को बचाया जा सकता है। दूसरी बात यह है कि जैसे कि कोविड-19 प्रोटोकॉल है कि एसिंप्टोमेटिक पेशेंट घर में रह सकते हैं लेकिन अगर उनका ऑक्सीजन लेवल ड्रॉप होता है तो उनको फौरन अस्पताल में जाना चाहिए। उनको यह वेट नहीं करना चाहिए कि उनको कितनी प्रॉब्लम हो रही है हो सकता वह देखने में ठीक हो अभी उनकी सांस नहीं रुक रही हो लेकिन अक्सीजन का 94 से नीचे जाना है अगर एक पैमाना है तो उसका उनको पालन करते हुए अस्पताल जाना चाहिए। इसमें उन्हें किसी भी तरह का कोई शर्म संकोच नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह एक महामारी है यह कोई लज्जित करने वाला दुष्कर्म नहीं है कि जिससे आप मुंह छुपाए। इसलिए हमारी सभी तमाम जनता से यह अपील है कि जिन लोगों को करोना हुआ है, हमारा उनसे यह निवेदन है कि वह डॉक्टर के साथ परामर्श पर रहे और जैसे उनको लगता है कुछ परेशानी है तो वह फौरन अस्पताल में जाएं और वहां पर वह डॉक्टर के दिए हुए निर्देशों को मानने तभी जाकर करोना से बचा जा सकता है।

Thursday, May 6, 2021

क्या डिस्टिक सांबा का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत है करोना का वेग संभालने के लिए।


 इस वक्त जैसे की करोना का खौफ चल रहा है। हर एक जगह तकरीबन रोज ही करोना के नए-नए के सामने आ रहे हैं। इतना ज्यादा केस होने से जो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर है उस पर इसका बहुत ही भारी लोड है। अभी हमने विजुअल देखे थे की चेस्ट डीजी़जस् हॉस्पिटल जम्मू के, यहां पर लोगों को बेड नहीं मिल रहे हैं और वह बाहर ही ऑक्सीजन का सिलेंडर लेकर कहीं सीड़ियों में, कहीं पार्क में कहीं फुटपाथ पर ही सोए पड़े हैं। इसी तरह से अगर हम बात करें तो सांबा डिस्टिक की बात करें सांबा डिस्टिक भी पिछले दिनों ही लॉकडाउन के दायरे में आया था।जम्मू कश्मीर में चार डिस्ट्रिक्ट में लॉकडाउन को बढ़ाया गया था और सांबा डिस्टिक की लॉक डाउन के लिए नई एडिशन हुई थी, यहां भी हालात कुछ ठीक नहीं दिखते हैं। आज ही बड़ी ब्राह्मणा के इलाके में 4 माइक्रो कंटेनमेंट जोन आई है। हम आपको यह बताना चाहते हैं कि अगर सांबा डिस्टिक में हालात बिगड़ते हैं तो क्या सांबा डिस्ट्रिक्ट का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर इन को संभालने के लिए तैयार हैं। अगर हम बात करें डिस्टिक सांबा के सुंब एरिया की जिसमें 8 पंचायतें हैं और जिसके आबादी  20-25 हजार के करीब है। और इतनी आबादी की देखभाल करने के लिए वहां पर एक ही प्राइमरी हेल्थ सेंटर है जिसमें सिर्फ तीन ऑक्सीजन सिलेंडर ही उपलब्ध है।अभी तक कोविड-19 की सेकंड वेव के चलते यहां पर, इस इलाका में कोई केस नहीं आया है कोई माइक्रो कंटेनमेंट जोन नहीं बनी है। हालांकि पहली करोना वेव में सुंब एरिया में भी माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनी थी। लेकिन अगर कल को कहीं करोना ने इस इलाके में दस्तक दी तो प्राइमरी हेल्थ सेंटर उस वक्त को संभालने के लिए तैयार होगा। तीन ऑक्सीजन सिलेंडर से कितने ही लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध हो पाएगी। हम एडमिन्सट्रेशन से यही प्रार्थना करते हैं कि वक्त की नजाकत को देखते हुए पहले से ही सुंब के अस्पताल में कुछ इस तरह के अरेंजमेंट किए जाएं कि कम से कम वहां पर 50 के लगभग करोना मरीजों की ऑक्सीजन के लिए और मेडिकेयर का इंतजाम हो सके ताकि सांबा के डेडीकेटेड कोविड-19 डिस्टिक हॉस्पिटल पर इसका लोड ना पढ़ सके और स्थिति बिगड़ने से बच सके।

पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री कविंदर गुप्ता जी आए विक्रम रंधावा के समर्थन में


 एक नयूूूज़ चैनल को दिए गए इंटरव्यू में पूर्व उपमुख्यमंत्री, विधानसभा के स्पीकर रहे और भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री कविंद्र गुप्ता जी विक्रम रंधावा के समर्थन में बोलते नजर आए। उन्होंने कहा कि माइनिंग का जो धंधा है उसमें एक नैक्सस काम कर रहा है और कुछ ऑफिसर अक्सर बार-बार एक ही जगह पर लगते हैं। उन्होंने कहा की इन सब चीजों की जांच होनी चाहिए। उनका यह भी कहना था कि विक्रम रंधावा जी ने जो आरोप लगाए हैं बेशक उनकी जो बोल चाल थी वह गलत थी, उन्होंने अभद्र भाषा का प्रयोग प्रयोग किया था, अनपार्लियामेंट्री लैंग्वेज यूज की थी लेकिन फिर भी उन्होंने जो आरोप लगाए हैं वह किसी हद तक सही है। उसकी जांच होनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि क्रशर के जो यूनिट लगे हैं यह भी एक इंडस्ट्री है और अगर इंडस्ट्री को रा मटेरियल ही नहीं मिलेगा तो इंडस्ट्री काम कैसे करेगी। उनका मानना था कि जो माइनिंग में जो भी कानून बनता है वह लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनना चाहिए। अगर 1000 की चीज लोगों तक 5000 की पहुंच रही है तो निश्चित ही एक बहुत ही गलत बात है। उन्होंने कहा कि किस तरह से 2500000 का जुर्माना रातो रात एक करोड में तब्दील हो गया। इसकी भी जांच होनी चाहिए। वह वाइन शॉपस् के मुद्दे पर भी अपनी ही सरकार को घेरते हुए नजर आए। जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा के स्पीकर रहे श्री कविंदर गुप्ता जी विक्रम रंधावा के समर्थन में आए हैं तो आप यह मुद्दा और गर्माने वाला है क्योंकि कहीं ना कहीं माइनिंग को लेकर जो हमारी यूनियन टेरिटरी में जो तनाव चल रहा है उसका विपक्षी पार्टियों को ही नहीं, भाजपा के अंदर भी उसके एक चिंगारी सुलग रही है जो आने वाले समय में एक बड़ी आग का रूप धारण कर सकती है।

Friday, April 9, 2021

करोना का बढ़ता कहर। 27 यूनिवर्सिटी से, 7 एमबीबीएस स्टूडेंट, 50 साइंस कॉलेज से, बचाव जरूरी है।


जम्मू यूनिवर्सिटी से करोना के 26 नए मामले सामने आए हैं एडमिन्सट्रेशन द्वारा सेंपलिंग के दौरान डेढ़ सौ लोगों का सैंपल लिया गया जिसके बाद में उसमें यह पाया गया कि उसमें से 26 के लगभग करोना पॉजिटिव केस थे। 
  यह निश्चित ही एक बहुत ही दुखद और शॉकिंग समाचार है क्योंकि जम्मू यूनिवर्सिटी जो जम्मू यूनिवर्सिटी में इस वक्त एग्जाम चल रहे हैं और छात्रों की एडमिशन का भी दौर चल रहा है। तो इस वक्त 26 के लगभग करोना पॉजिटिव केस मिलना यह चिंता का विषय है और यह यह भी दर्शाता है कि हालात कितने खराब है। इसी तरह से एक सूचना के अनुसार एमबीबीएस के सात स्टूडेंट्स भी करोना पाजिटिव पाए गए। अभी हम पिछले दिनों की ही बात करें तो पिछले कल और परसों में साइंस कॉलेज में भी तकरीबन-तकरीबन 2 दिनों में 50 के लगभग मामले आए हैं। इसी तरह से और स्कूलों में भी सैंपलिंग के दौरान पॉजिटिव केस आ रहे हैं तो जैसा कि हम अपने माध्यम से पहले भी आपको बता चुके हैं यह एक निश्चित ही एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है और प्रशासन को इसके बारे में सोचना चाहिए कि किस तरीके से सारे हालात को सुधारा जाए। ऐसे में छात्रों के एग्जाम की ही बात करें तो भी हमने पिछले दिनों में यह देखा था कि वीमन कालेज परेड की लड़कियों ने भी ऑनलाइन एग्जााम की की मांग करते प्रोटेस्ट किया था और रोड ब्लॉक की थी। उनका।कहना था के करोना के बढ़ते हुए खतरे के तहत उनके ऑनलाइन एग्जाम लिए जाएं वो ऑफलाइन एग्जाम नहीं देंगी। एक तरह से यह सही भी दिखता है जिस तरह से करोना के केस बढ़ रहे हैं उससेे तो ऑनलाइन एग्जाम ही बेहतर है और एक सुरक्षित विकल्प भी है। तो प्रशासन को भी अब इसके बारे में सोचना चाहिए कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ना करते हुए बेहतर तरीके से यह सारा काम संभव हो सकता है। 

Thursday, April 8, 2021

कोरोना वायरस की दूसरी लहर और स्कूल्स


कोविड-19 की दूसरी लहर के चलते आज पूरे भारत में 126789 केस दर्ज किए गए जोकि अपने आप मैं एक रिकॉर्ड है। क्योंकि जब से कोविड-19 शुरू हुआ है इतनी बड़ी संख्या में कभी भी 1 दिन में इतने केस नहीं आए इससे हमें यह पता चलता है कि कोविड-19 कितना विकराल रूप लेता जा रहा है। अगर हम जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी की ही बात करें तो पिछले 24 घंटे में 555 केस दर्ज किए गए जिनमें 178 सिर्फ जम्मू डिवीजन से थे और जो मामले सामने आए हैं उनमें अगर हम बात करें तो गवर्नमेंट साइंस कॉलेज में 30 मामले दर्ज किए गए जोकि 1 दिन के समय में बहुत ज्यादा है। इसी तरह से अलग-अलग जगहों पर स्कूलों में भी कई मामले दर्ज किए गए। इसमें जैसे कि सरकार की तरफ से स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स हैं उनको हमने फॉलो करना है, सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना है और मास्क पहनना जरूरी है। जैसे कि कल दिल्ली हाईकोर्ट की एक रूलिंग आई है जिसमें उन्होंने यह कहा है कि अगर आप अपनी निजी गाड़ी में जा रहे हैं और आप अकेले हैं, तब भी आपको मास्क पहनना अनिवार्य है तो इसी से पता चलता है की स्थिति कितनी गंभीर है कि कोर्ट को भी इसमें दखल देना पड़ रहा है। अगर हम स्कूलों की बात करें तो यूटी प्रशासन ने पहले ही नाइंथ क्लास तक स्कूल दो हफ्तों के लिए बंद किए हैं और 12th तक तक एक  हफ्ते के लिए। लेकिन अगर हम यह देखें तो यह बात सिर्फ बच्चों पर लागू हो रही है जो वहां के स्टाफ मेंबर्स है, टीचींग या नॉन टीचिंग साफ है, उन पर यह बात लागू नहीं की जा रही। सोचने का विषय यह है कि अगर स्कूल में बच्चे ही नहीं है तो स्कूल में स्टाफ मेंबर्स का जमावड़ा लगाना कहां से उचित है इसी के चलते स्कूलों में भी लगातार कोविड-19 के केस आने शुरू हुए हैं, जिससे किसी तभी किसी स्कूल को 2 दिन के लिए बंद करना पड़ रहा है और अलग-अलग तरह से प्रशासन इस को देख  रहा है। हमारा प्रशासन से यही अनुरोध है कि स्कूलों में जैसे कि पहले भी आर्डर किए जा चुके हैं कि थोड़े थोड़े टीचर थोड़े थोड़े दिनों के अंतराल के बाद आते रहे जिससे स्कूल का डेस्क वर्क भी चलता रहे और करोना का खतरा भी ना रहे। सरकार की तरफ से जो टीचर्स की आरटी पीसीआर टेस्ट किए जा रहे हैं वह भी एक सराहनीय कदम है। लेकिन हमारा लोगों से अनुरोध है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें, मास्क पहने और जितने भी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स है उनका पालन करें। करोना का वायरस जैसे जैसे अपने आप को चेंज करता जा रहा है इस तरीके से हमें भी अपने आप को उतना ही सजग कर लेना चाहिए। जैसे कि अब कुछ नए लक्षण लोगों में दिखाई दे रहे हैं तो हमारा सभी से यह अनुरोध है कि इस अदृश्य दुश्मन को हम तभी पराजित कर सकते हैं जब हम एक सोच के साथ चलें तो इस सोच में प्रशासन के साथ हमारी समरसता होना जरूरी है। अगर हम प्रशासन के दिए हुए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स का पालन करें और निजी जिंदगी में भी उनका अच्छी तरह से अनुकरण करें तो हम इस करोना को निश्चित ही हरा पाएंगे।

Wednesday, April 7, 2021

वन्य प्राणियों का शहरी इलाकों की तरफ रुखः चिंता का विषय


अभी कल ही हमने एक खौफनाक मंजर देखा जब जम्मू शहर के गांधीनगर इलाके के ग्रीन बेल्ट पार्क में एक तेंदुए ने कई लोगों को बुरी तरह से जख्मी कर दिया। हालांकि बाद में वह तेंदुआ पकड़ा गया लेकिन यह चिंता का विषय बन गया कि आखिरकार यह तेंदुआ ग्रीन बेल्ट जैसे इलाके में जो कि शहर के बीचोंबीच स्थित है वहां कैसे पहुंच गया। सुबह का यह वाक्य लोगों में एक चिंता का विषय और साथ में एक अफरा-तफरी का माहौल भी बना गया और चर्चा का विषय भी बन गया। अभी यह वाक्य की चर्चा कमी नहीं थी की फिर से यह खबर सुनने में आई की शाम के वक्त एक और तेंदुआ बाग ए बाहु के इलाके में देखा गया जिससे लोगों में एक अफरा-तफरी और दहशत का माहौल बन गया। अभी बीते दिनों की ही बात है कि एक हिरण विजयपुर के पास देखा गया था और वही पिछले दिनों एक भालू के सांबा के सुंब क्षेत्र में देखने की की भी खबर मिली थी और वहां पर एक औरत को इस बुरी तरीके से काटा गया था कि बाद में उसकी मृत्यु हो गई। हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि यह जो औरत थी यह  भालू के काटने से ही मरी या काटने वाला भालू ही था क्योंकि अंधेरे में उसको पूरी तरह से देखा नहीं गया लेकिन डॉक्टरों के अनुसार जिस हिसाब से कलाई की हड्डियां तक काट दी गई थी वह किसी जंगली जानवर का ही काम हो सकता है। कुत्ते के जबड़े में इतनी ताकत नहीं कि वह इस तरीके से इंसानी हड्डियों को तोड़ सके। तो सबसे बड़ी बात जो उभरकर आती है वह यह है आखिरकार यह वन्य प्राणी शहरों का रुख क्यों कर रहे हैं। अब अगर गौर से सोचा जाए तो पहले यह बात आती थी की जंगल खत्म हो रहे हैं तो जानवरों को कुछ खाने के लिए नहीं मिल रहा तो वह शहर की तरफ रुख कर रहे हैं लेकिन अब की स्थितियों पर अगर हम गौर करें तो हम यह पाते हैं कि पिछले 1 साल से करोना की वजह से इंसानों का बाहर निकलना काफी कम हुआ है और इंसानों के बाहर जाने के जो दुष्परिणाम है, जो इंसान का नेचर के के साथ  खिलवाड़ है वह बहुत ही कम हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप हम देखते आए हैं कि बहुत से वीडियो हमने ऐसे देखे हैं पिक्चर हमने देखी हैं कि जो वन्य प्राणी है वह शहरों की तरफ रुख करने लगे हैं क्योंकि जो जंगल का दायरा है वह बढ़ गया है, जंगल हरे भरे हो गए हैं, वह कटे नहीं है हरियाली बढ़ गई है। इसलिए कई जगह की, फॉरेन कंट्रीज की, हमारे यहां कि हमने तस्वीरें देखी हैं कि जो वन्य प्राणी है उन्होंने शहरों की तरफ रुख किया है जंगल घने होने की वजह से जो इलाके, शहरी निवास स्थान, जो जंगलों के साथ लगते हैं वहां पर इस तरह की घटनाएं हुई हैं। जैसे सांबा के सुंब क्षेत्र में एक भालू का आना जो कि वहां के लोगों के लिए काफी चर्चा का विषय बना रहा। हमने यह भी देखा कि जब पवित्र वैष्णो देवी धाम की यात्रा बंद थी तो वहां भी दो चार बार शेरों को स्पाट किया गया क्योंकि यात्रा नहीं होने की वजह से, इंसानों के ना आने की वजह से यह जानवर अपना जंगल छोड़कर माता रानी की पहाड़ियों में से निकल कर माता रानी के रास्ते में जहां से श्रद्धालु जाते थे वहां पर पहुंच गए। और इसी तरह से अगर हम देखें तो बाग ए बाहु के साथ जो इलाका लगता है जैसे मोहमाया के जंगल, इलाका घना होने के साथ वहीं पर पहले तेंदुआ देखा गया था। हो सकता है वहां एक नहीं दो- चार हों और उन मे से एक चलते हुए ग्रीन बेल्ट क्षेत्र तक पहुंच गया हो। हालांकि यह यह सोचने का विषय है कि वह तेंदुआ ग्रीन बेल्ट इलाके तक कैसे पहुंच गया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि हम इन चीजों को कैसे रोक सकते हैं क्योंकि अगर हम इनको रोकने में कामयाब नहीं हुए तो जिस समरसता के साथ इंसान और जानवर रहते हैं उसमें बदलाव आ जाएगा। अगर हम इकोलॉजिकल पिरामिड की बात करें तो इकोलॉजिकल पिरामिड में जो शेर होता है वह  टॉप पर है ऐसा इसलिए माना गया है कि अगर शेर इकोलॉजिकल के टॉप पर है तो इसका मतलब है कि आपके जो वन हैं वह हरे भरे हैं, उनमे हरियाली है और वह चुस्त-दुरुस्त और अगर वह चुस्त-दुरुस्त हैं तो हमारी पृथ्वी भी चुस्त और दुरुस्त और ऑक्सीजन से भरपूर है। हमें सिर्फ इतना करना है कि हमें इन हादसों को रोकना होगा यहां से हमें यह लगता है कि यह शहरी इलाके में प्रवेश कर सकते हैं वहां हमें लोहे की तारों का बाड़ा लगाकर या किसी और तरीके से इनको शहर में प्रवेश करने से रोकना है ताकि यह जंगल में ही रहे और जो इंसानों के साथ इनका टकराव है वो ना हो।

Wednesday, February 24, 2021

Detachment of all the Academic Persons is on cards in Education Deptt.


 Detachment of all the Academic Persons is on cards in Education Deptt. Sources revealed to Samba Times that there are so many academic persons who are attached/ deployed in School Education Deptt. The authorities has taken it seriously, so according to the sources, they can be detached at any time. Although these type of orders are also made earlier but influential persons still have hold in the power corridors and remained in the offices on one or other pretext.

Monday, October 12, 2020

Roshni Land Scam: Politicians, Bureaucrats and Land Mafia

In much publicized infamous Roshni Land Scam, the division bench of of J&K High Court comprising Chief Justice Gita Mittal and Justice Rajesh Bindal has transferred the Roshni land Scam to the Central Bureau of Investigation. The division bench has observed that Roshni scheme promoted 'loot' on policy and

     the looters managed a legislation to facilitate their nefarious design because of their deep penetration into the corridors of power and authority 

     The division bench also observed that we have not come across any such legislative state action legtimizing criminal activity at the cost of national and public interest with incalculable loss and damage to the public exchequer and the environment without any financial or other impact assessment. The division bench has remarked that those in power and the respondents have completely failed to discharge their constitutional functions, their statutory duties and public law applications towards the public to whom they owe their very existence. Stating that J&K state lands (vesting of ownership to the occupants rules 2001) clearly ultrawires the parent act. The division bench said

     No approval of these rules were sought from the legislature and these were  unauthorisedly published in the government gadget 

    and shockingly these rules were in excess of the powers conferred by the statue and in contradiction with the prohibitions contained therein and this was done despite the mandate of the constitution and the law laid down by the supreme court and this executive action did not have the clearance of the legislation speaks volumes about the influence of the beneficiaries. Pointing towards various judgements of Supreme Court and high court of the country, the division bench headed by chief justice said public property has to be dealt with fairly and the distribution thereof has to be equally done for a public purpose ensuring maximum consideration. The division added the enactment has been worked to facilitate illegal vesting of state lands in the hands of powerful despite the mandate of the land regarding distribution of largess by the state. The division bench has declared that all acts done under the Jammu and Kashmir land vesting of ownership to the occupants act 2001 known as Roshani schemes as unconstitutional and void ab initio and directed that Large tracks of state land vested under the scheme and those still under illegal encroachment must be retrieved in accordance with the law. Moreover the highest court of the union territory of Jammu and Kashmir has stressed that appropriate Criminal action must be taken against all those who had committed the alleged illegal acts of ommission and cmmission. The division bench further observed that land vesting of ownership to the occupants act 2001 is in complete violation of the provisions of the constitution and binding principles laid down by the supreme court as such is ultrawires to the constitution and void ab initio from its very inception. It said the legislation adversely impacts the rights granted to the people under article 14 and 21 of the Constitution of India. The High court further observed

        the projected object of supporting Hydel Projects out of the same proceeds was only in order to give semblance and propriety to the object 

       It is pertinent to mention that while making the Roshni Act of 2001, the then finance minister had claimed that the scheme would generate resources worth rupees 25448 crore which would be utilised on raising Big Power Projects and making the state self sufficient in electric power but CAG report pointed out that astonishingly just rupees 76 crore had been generated after umpteen extensions to the act in operation in 12 years. Moreover 20 lakh kanal of the state land unauthorisedly formalized on the name of Roshni Act of 2001. The Roshni Act was came into surface when principal Accountant General for Jammu and Kashmir added a special audit of the so-called Roshni scheme on the recommendations of the state advisory committee of the Comptroller and Auditor General of India in 2012 and 2013. According to its reports the state caused loss of rupees 25000 crore to the exchequer by way of giving huge chunks of state land virtually for free to those who had grabbed it illegally.

   This judgement of the court again clearly reflects that how much land mafia has penetrated in our political circles and has the sway on them & how the erstwhile state of J&K was the den of corruption.

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Tuesday, September 29, 2020

Mubarak Mandi Palace: The Royal Seat of Dogras & Identity of Dogra Culture

Mubarak Mandi Palace, the Royal Seat of Dogras

History of a country, region or state is the repository of its culture, heritage & it is reflected in the monuments attached with it. If we talk about the Dogra Dynasty, the history of it will not complete until unless we talk about Mubarak Mandi Palace, the seat of the Dogra dynasty which was once spanned from Pir Panjal Range in the North to plains of Punjab in the South & to Laddakh in the East to the frontiers now under Pakistan. It was in the 17th century that Raja Hari Dev Singh who after capturing so many small principalities in the area became a king and started the dynasty of Jamwal Dogra Rajputs. It was in the era of his grandson Raja Dhruv Dev who after creating a new mansion, out looking the river Tavi, made a new capital which was called Mubarak Mandi after renouncing older seat at Purani Mandi.

     In 1783 the Jammu kingdom of Raja dhruvdev was attacked by Shukr Chakiya Missal which was a very powerful missal among so many missals of Sikh Kingdom of Maharaja Ranjit Singh and burnt down the large part of Mubarak Mandi and thus started a feudal war which lasted for 25 yrs. It was the period of chaos and uncertainty which prevailed over till the 19th century and was ended when Maharaja Ranjit Singh captured whole of the Jammu region and annexing it in the Sikh Empire after defeating Raja of Jammu in the Battle of Jammu in 1808 and gave it as a Jagir to Kishore Singh Rajput Dogra (a distant relative of Raja Ranjeet Dev) in lieu of his services in the war. Kishore Singh afterwards gave it to his son Gulab Singh after being nominated in the Lahore Darbar.It was an interesting fact that Gulab Singh son of Kishore Singh was earlier decorated with the Jagir of Balakot region (now in Pakistan) but due to a rebellious attitude of the tribes, he was not comfortable there. So he gladly accepted the offer and sworned in as Raja of Jammu by none other that Maharaja Ranjit Singh at Jia Pota Ghat in Akhnoor on the bank's of river Chenab on 16th June 1822 afterwards and this started the famous Royal Dogra Dynasty.

Coronation of Maharaja Gulab Singh

     It was under Gulab Singh that Jammu region became a Kingdom and Mubarak Mandi Palace became the the seat of administration of Raja Gulab Singh. 


Raja Gulab Singh decorated Mubarak Mandi complex and constructed some buildings but it was only under his son Ranveer Singh that it came to its present form. After sworning as Maharaja of Jammu and Kashmir in 1846 after the Treaty of Lahore and shifting of his capital from Jammu to Srinagar, Gulab Singh handed over the Mubarak Mandi Palace to his son Ranbir Singh.Ranbir Singh decorated and expanded it till 1874 by constructing several buildings.

 

Dogra Rulers

         After Ranveer Singh his successor Pratap Singh also expanded it and made a new beautiful structure there called Rani Charak Palace in 1913 for his queen which belongs to Charak dynasty.

    

Rani Charak Palace

       The whole of the Mubarak Mandi Palace is situated at a hillock and at the prime land of Jammu which is near about 14 acres and housed near about 25 buildings of different types of dates and architecture such as Barouqe style of Europe plus Mughal and Rajsthani Architecture, thus make it a unique blend of architectural history. The oldest building in the palace is of 1824.

Ruins still reflecting old glamour


It was the main seat of Dogra dynasty of Jammu until 1925 when Maharaja Hari Singh after ascending the throne changed the seat to Hari Niwas Palace. After 1947 it came under the control of the government and from 1947 to 80's and even 90's, it was the main seat of the government of erstwhile state of J&K. In an earthquake in 1980's the big part of the building again collapsed including the famous Ghol Ghar.
 
Marvellous Architecture

  Till date the building was gutted into fire 13 times either due to natural or due to intrigues. The Tosh Khana ( Royal Treasury) ia already shifted from here.

Pink Hall (Captivating Beauty)

The main attraction of the building was it's Pink Hall (due to its pink colour) which now housed in a museum which has several miniature paintings of different styles. The Ghol Ghar of the building is in ruins. The only part open now and main attraction of the building is Dogra Art Museum which has different 800 different types of art paintings of different schools. It has also the golden bow and arrow of Shahjahan, the Mughal Ruler and other interesting things. The Dogra Art Museum has precious collection of of Dogra art and miniatures it has manuscripts of of various eras, jewellery, coins and oil paintings. In all the objects number around 7320 and a reference library of near about 2600 books and contains rich trove of knowledge there. 

       


As the Mubarak Mandi Palace is a link to the Dogra Dynasty, Dogra identity, Dogra culture & Dogra Virasat so when the seat of the government is shifted from from Mubarak Mandi Palace to Civil sectt, this prestigious heritage is in shambles. Building complex due to its non care was deteriorating and growing in shambles. In near about every rainy season some part of the building complex collapses. There was a strong rant from all the Dogra from that this monument, prestigious heritage, this building Complex which is related to the Dogra identity, Dogra culture; it should be preserved. But till date if you see there is nothing you can say in the right direction. Although Darbar Hall Complex is renovated and work is also going on Rani Charak Palace but it is going on snail's pace. There are only half hearted measures from the successive govt for its preservation. The famous Ghol Ghar, Haathi Deodi ( The Gateway to Mubarak Mandi Complex) are already in ruins.


But still the beauty and remains of the complex mesmerizes the people and gives them the glimpses about the ancient grandeur of this palace. One may go in Nostalgia on seeing the ruins. The ancient glamour and valour of Dogra rulers who hoisted their flag in Gilgit, Baltistan and Skardu inthralls him but It also makes him ponder that

      "Every dynasty whatsoever strong and grand it was,.... Ultimately has to meet his doom..."

Sunday, September 20, 2020

History of Struggle for Creation of Distt Samba, Part 15 (Last) : Announcement of Distt Status to Samba.

 

As we already told you after a lull of near about 6 years the political activities started in J&K and and in the elections that held in the year 1996, NC got the majority & Farooq Abdullah sworned in as chief minister of J&K state. The situation was very tense at that time also and as we have already told you that demand for Samba Distt and other issues of social and political important were raised by advocate Sukhdev Singh sambyal in Samba. In 1997 the All Parties Distt Action Committee delegation met with Chief Minister Farooq Abdullah and reminded him of the promises made by his father and also by his Govt (Meeting of All Parties Delegation with PL Handoo then Law Minister in the year 1987 and promise of announcing Samba Distt in coming January of next year) regarding Distt status to the people of Samba. CM Farooq Abdullah listened the delegation very patiently and assured them about the positive outcomes. In the meanwhile, strikes and dharna Pradarshans had been going on in Samba and demands for Sub Distt Magistrate (S.D.M) and Distt & Sessions Court plus 'Degree College' & 'Accidental Hospital' & Renovation of Samba Fort were main among them. People of Samba again had to wait & as nothing positive came. As no development was taking place in samba, meanwhile a sum of money amounting 1.58 crore which was came for establishing Samba as Model Town were squandred. So the All Parties district Action Committee send a memorandum to Governor Girish Chander Sexsena  siting various reasons for the distt status to samba and rampart corruption (Para No. 3 of the Memorandum; Squandring of Rs. 1.58 crores under the Central Scheme for creation of Samba as a 'Model Town') and sought his immediate intervention in the matter but nothing happened.


Copy of Memorandum to Governor


 In the year 2002 elections no party got the majority & then the 'Coalition government' was formed by the PDP and Congress-I with the condition that first 3 years there will be Chief Minister of PDP and after that of Congress. So the Coalition under the Chief Ministership of Mufti Mohammed Sayeed takes oath. Advocate Sukhdev Singh sambyal owing his previous relations with Mufti Mohammed Sayeed met with him and put forth the demand for Samba district but all in vain, only assurances n asurances & promises n promises. But the pressure was building up & soon or later Govt has to buckle up. Three years of Mufti Govt has passed & Ghulam Nabi Azad was sworned as Chief Minister of J&K in 2005. Mr Sukhdev Singh Sambyal met him after his swearing in ceremony & apprised him of the aspirations of the people of Samba. Mr Azad offered some concrete this time as this issue was pending from  last more than two decaes. The aspirations of the people for Samba district come fullfilled when Mr Ghulam Nabi announced district status for samba on 6th of July, 2006. So the long pending demand of this people of Samba having their own district was realised after a long struggle of near about 28 years. Thakur Sukhdev Singh writes about this

  "One thing which I noticed is that if you have confidence, willpower inside you can achieve anything sooner Or later. The people of Samba are study and tough and make their living in the kandy belt of Samba district where there is no means of water. They make their subsistence living & made sacrifices for their country which makes them tough. Their main profession is either  to go to Army or to be a farmer. So these kind of sturdy and tough people  won't be afraid of struggle. Although there might be some moments/ times it looked that target is too far but there is always a silver lining behind the dark clouds. So at last we will be able to achieve it and on 6th of July 2006, Samba got the status of District Samba after a long drawn and squeezing struggle. It was the victory of  patience, justice which lies turbulent, vibrant behind this stuggle"

All Parties Distt Action Committee Rally greeting people for Samba Distt.(9th July, 2006)

Thanks to all of our readers/ followers who send us their emails about this struggle, their compliments their questions. Samba times is grateful to them.

Friday, September 11, 2020

History of Struggle for Creation of Distt. Samba, Part 14: Protests, Petitions & Political Instability

It was the year 1990 when Farooq Abdullah resigned as the chief minister of Jammu and Kashmir state after the joining of  Jagmohan as the governor of state of J&K. Militancy was at its peak and in these circumstances the only concern of the Governor Jagmohan was to to eliminate the terrorism from Jammu and Kashmir state. In these conditions when all the political activities were at freeze and nobody has to represent the people's wishes, their desires, their requirements, All Parties District Action Committee delegation under the leadership of Sukhdev Singh Sambyal advocate met with Governor Jagmohan in Srinagar for the district status to Samba. Jagmohan met with the delegation warmly but expressed his inability as creation of new administrative units is the prerogative of the elected government but on insistence promised to consider the case.  The Kashmir turmoil was on offing. Already lakhs of Kashmiri pandits migrated from Kashmir & thousands butchered. There was bloodshed and violence everywhere Kashmir turmoil was at its peak and this time to buy Pakistani nationals tried to violate International Border at Suchetgarh in Jammu and second attempt was at Uri, Kashmir. With the assassination of Mirwaiz Maulvi Farooq by the militants, the situation becomes very critical and in this circumstances on 25th may 1990 Jagmohan resigned as governor of J&K state and G C Sexsena took over as new governor. In 1993 two close relations of PCCI chief G R Kar killed and one close relation of Ghulam Nabi Azad was also shot at to sabotage any political process. So all political activity was at stand still and Govt has no time to hear the grievances of the people as their sole concern was terrorism and to initiate the political process. On 29th February 1994 the unanimous  resolution adopted by the Lok Sabha with regard to the J&K firmly declares that J&K an integral part of India and soon  political activity will be started there. It was after a gap of near about six years  elections held in 1996 in which National Conference won 59 seats  and on 9th October 1996 Farooq Abdullah sworn in as chief minister of J&K state. As the longing desire of having district status for Samba still smoldering in the minds of the people of samba and 'Dharnas', protests were continued in samba. Sukhdev Singh Sambyal still raising the issues of public importance on behalf of Citizens of Samba.

Funds at the tune of 1.50 crore




But the situation take the ugly turn when on February 99 on the Indian PM Atal Bihari Vajpayee goodwill visit to Lahore was back stabbed by Pakistan  and culminated into 'Operation Vijay' on 26 may 1999. 

To be continued....


यह वर्ष 1990 था जब जगमोहन के जम्मू-कश्मीर राज्य के गवर्नर के रूप में शामिल होने के बाद फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।  मिलिटेंसी अपने चरम पर थी और इन परिस्थितियों में राज्यपाल जगमोहन की एकमात्र चिंता जम्मू-कश्मीर राज्य से आतंकवाद को खत्म करना था।  इन स्थितियों में जब सभी राजनीतिक गतिविधियाँ स्थिर थीं और लोगों की इच्छाओं, उनकी आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा था, सुखदेव सिंह समब्याल वकील के नेतृत्व में ऑल पार्टीज डिस्ट्रिक्ट एक्शन कमेटी के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल जगमोहन के साथ श्रीनगर में  सांबा को जिला का दर्जा पाने के लिए मुलाकात की। जगमोहन ने प्रतिनिधिमंडल के साथ गर्मजोशी से मुलाकात की लेकिन अपनी असमर्थता व्यक्त की क्योंकि नई प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण निर्वाचित सरकार का विशेषाधिकार है लेकिन आग्रह पर मामले पर विचार करने का वादा किया।  कश्मीर में उथल-पुथल मची  थी।  पहले से ही लाखों कश्मीरी पंडित कश्मीर से पलायन कर चुके थे और हजारों मार  दिए गए थे खून-खराबा और हिंसा चरम पर थी और इस बार पाकिस्तानी नागरिकों ने जम्मू के सुचेतगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करने की कोशिश की और दूसरा प्रयास कश्मीर के उडी में हुआ।  उग्रवादियों द्वारा मीरवाइज मौलवी फारूक की हत्या के साथ, स्थिति बहुत खराब हो गई और इस स्थिति में 25 तारीख को 1990 में जगमोहन ने जम्मू-कश्मीर राज्य के राज्यपाल के रूप में इस्तीफा दे दिया और जी सी सेक्सेना ने नए राज्यपाल का पदभार संभाला।  1993 में पीसीसीआई प्रमुख जी आर कार के दो करीबी रिश्तेदार और गुलाम नबी आज़ाद के एक करीबी रिश्ते को भी किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा  बनने के लिए गोली मार दी गई।  इसलिए सभी राजनीतिक गतिविधि अभी भी स्थिर थी और सरकार के पास लोगों की शिकायतों को सुनने का समय नहीं था क्योंकि उनकी एकमात्र चिंता आतंकवाद थी और राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करना था।  29 फरवरी 1994 को J & K के संबंध में लोकसभा द्वारा अपनाए गए सर्वसम्मत प्रस्ताव ने दृढ़ता से घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और जल्द ही वहां राजनीतिक गतिविधि शुरू की जाएगी।  1996 में लगभग छह वर्षों के बाद चुनाव  हुआ था, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 59 सीटें जीती थीं और 9 अक्टूबर 1996 को फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी।  सांबा के लोगों के मन में अभी भी सांबा के लिए जिला का दर्जा पाने की लालसा के चलते, सांबा में विरोध प्रदर्शन जारी थे।  सुखदेव सिंह सम्याल अभी भी सांबा के नागरिकों की ओर से सार्वजनिक महत्व के मुद्दों को उठा रहे थे। लेकिन स्थिति बदसूरत मोड़ लेती है जब 1999 में फरवरी को भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर की सद्भावना यात्रा पाकिस्तान द्वारा कारगिल मे घुसपैठ कर के की गई थी जिसके नतीजतन 26 मई 1999 को 'ऑपरेशन विजय' शुरू  हुआ था।

Thursday, September 3, 2020

Inclusion of Dogri language as the Official Language of JKUT: Boost to Cultural Identity


Inclusion of Digri as Official language of Jammu and Kashmir

 A very positive move which enthralled the heart of all the Dogras came on Wednesday when Union Cabinet approved the Bill under which Kashmiri, Dogri and Hindi, apart from the existing Urdu and English will be the official languages of the Jammu & Kashmir Union Territory. Announcing the decision at a news briefing, Union Minister Prakash Javedkar said the Jammu & Kashmir Official Languages Bill, 2020 will be introduced in the Parliament in the upcoming Monsoon Session. The bill received the Cabinet nod Wednesday at a meeting presided by Prime Minster Narendra Modi. 
The Cabinet decision will not only bring ease of governance, but also ease of citizen participation in governance in the newly created Union Territory of Jammu and Kashmir, Union Minister Dr Jatindera Singh said. He said this will remove the feeling of alienation among different communities and address the grievances of discrimination on the basis of language. The minister said the government has accepted the long-pending demand of the region for the inclusion of Dogri, Hindi and Kashmiri as officials languages in J&K but also in keeping with the spirit of equality which was ushered in after August 5 last year.

    From the day when India got Independence and all Indians were rejoicing freedom, In erstwhile state of Jammu & Kashmir, Dogras were still not independent. They were under the zoke of Kashmiri Rulers who left no stone unturned to make them their slaves mentally, educationally and Culturally. Dogri Language was no part of Administration. Even in schools & colleges, it was not in syllabus or when introduced; introduced as Optional Subject. The result of this was Alienation to our own Culture & that to the extent that our generations feeling it inferior to speak dogri language in front of other people.  All this was done in a systematic manner. In this regard, I want to quote some famous sayings that:
        
 "Language is the blood of the soul into which thoughts run and out of which they grow"
       
 "Language is the road map of a culture. It tells you where its people coming from and where they are going"
     
  &    "If you want to kill the culture, kill the language first"  

    So every effort was done to alienate Dogras from their Cultural Roots by cutting them on linguistic basis from their Mother Tongue and Royal Patronage which glorifies our culture had already gone. The words used by Dr Jatendra Singh "ease of participation" and "feeling of alienation among different communities and address the grievances of discrimination on the basis of language" clearly reflects the plight of the Dogras. It was really a stigma that that the three languages Dogri, Hindi and Kashmiri, which are spoken by nearly 70 per cent of the population of Jammu and Kashmir were not approved for use in official business. Even a time came when the posts of Dogri Subject in colleges in  a delibrate attempt were filled with Urdu teachers which was vehemently opposed by the Jammuites and the tide was stemmed. Now with decision there would be the spread of dogri language and dogra culture and the identity crisis and exitential threat will also remove. Noted personalities of Jammu Region has welcomed this decision and expressed their view points in this regard. Its not the exaggeration to say that; 

   Dogras has got their Independence today and the way to reunite with thier culture has opened.

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 एक बहुत ही सकारात्मक कदम जिसने सभी डोगरों के दिलों को रोमांचित कर दिया, बुधवार को आया जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उस विधेयक को मंजूरी दे दी जिसके तहत मौजूदा उर्दू और अंग्रेजी के अलावा कश्मीरी, डोगरी और हिंदी, जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की आधिकारिक भाषा होंगी।  एक समाचार ब्रीफिंग में निर्णय की घोषणा करते हुए, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर राजभाषा विधेयक, 2020 आगामी मानसून सत्र में संसद में पेश किया जाएगा।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में बुधवार को इस बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिली।

 केंद्रीय मंत्री डॉ जतिंद्र सिंह ने कहा कि कैबिनेट के फैसले से न केवल शासन में आसानी आएगी, बल्कि नए बने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में शासन में नागरिक भागीदारी में भी आसानी होगी।  उन्होंने कहा कि यह विभिन्न समुदायों के बीच अलगाव की भावना को दूर करेगा और भाषा के आधार पर भेदभाव की शिकायतों को दूर करेगा।  मंत्री ने कहा कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर में डोगरी, हिंदी और कश्मीरी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में शामिल करने के लिए क्षेत्र की लंबे समय से लंबित मांग को स्वीकार किया है, जो समानता की भावना को ध्यान में रखते हुए जो पिछले साल 5 अगस्त के बाद शुरू की गई थी।


 जिस दिन भारत को आजादी मिली और सभी भारतीय आजादी की खुशी मना रहे थे, जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन स्थिति में, डोगरा अभी भी स्वतंत्र नहीं थे।  वे कश्मीरी शासकों के अधीन थे जिन्होंने उन्हें मानसिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक रूप से अपना गुलाम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  डोगरी भाषा प्रशासन का हिस्सा नहीं थी।  यहां तक ​​कि स्कूलों और कॉलेजों में, यह पाठ्यक्रम में या जब पेश नहीं किया गया था, या वैकल्पिक विषय के रूप में पेश किया गया।  इसका परिणाम हमारी खुद की संस्कृति से अलग-थलग होना था और इस हद तक कि हमारी पीढ़ियों को अन्य लोगों के सामने डोगरी भाषा बोलने में हीनता महसूस हो रही थी।  यह सब एक व्यवस्थित तरीके से किया गया था।  इस संबंध में, मैं कुछ प्रसिद्ध बातें उद्धृत करना चाहता हूं:



 "भाषा आत्मा का रक्त है जिसमें विचार चलते हैं और जिसमें से वे बढ़ते हैं"



 "भाषा एक संस्कृति का रोड मैप है। यह बताता है कि इसके लोग कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं"



 & "यदि आप संस्कृति को मारना चाहते हैं, तो पहले भाषा को मारें"


 अतः डोगरा को उनकी मातृभाषा और  से भाषाई आधार पर काटकर उनकी सांस्कृतिक जड़ों से अलग करने का हर प्रयास किया गया था, जो हमारी संस्कृति को गौरवान्वित करता था। रॉयल संरक्षण तो पहले ही चला गया था। डॉ जतेंद्र सिंह द्वारा "भागीदारी में आसानी" और "विभिन्न समुदायों के बीच अलगाव की भावना और भाषा के आधार पर भेदभाव की शिकायतों " को दूर करने के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द स्पष्ट रूप से डोगरों की दुर्दशा को दर्शाते हैं।  यह वास्तव में एक कलंक था कि जम्मू और कश्मीर की लगभग 70 प्रतिशत आबादी द्वारा बोली जाने वाली तीन भाषाओं डोगरी, हिंदी और कश्मीरी को आधिकारिक व्यवसाय में उपयोग के लिए अनुमोदित नहीं किया गया था।  यहां तक ​​कि एक समय ऐसा भी आया जब कॉलेजों में डोगरी सब्जेक्ट के पदों को उर्दू शिक्षकों के साथ भर दिया गया, जिसका जम्मू के लोगों ने कड़ा विरोध किया था और तनाव का सामना करना पड़ा था।  अब इस निर्णय के साथ डोगरी भाषा और डोगरा संस्कृति का प्रसार होगा और पहचान संकट का खतरा भी दूर हो जाएगा।  जम्मू क्षेत्र की प्रसिद्ध हस्तियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं।  यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि;


 डोगरों को आज उनकी आजादी मिल गई है और उनकी संस्कृति के साथ पुनर्मिलन का रास्ता खुल गया है।


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