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Monday, March 15, 2021

गंगा शर्मा को प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया जाना, एक सुखद खबर

 


कल एक बहुत ही सुखद खबर सुनने को मिली जब गंगा शर्मा जो कि गवर्नमेंट कालेज फॉर वुमन परेड में डोगरी  में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम कर रही हैं को उनकी अपनी डोगरी कविता संकलन "मन्नै दा बोआल" के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया और इसी के साथ वह इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली जम्मू कश्मीर की पहली महिला बन गई। माननीय एलजी महोदय मनोज सिन्हा ने भी उनको उनकी इस उपलब्धि के लिए और जितने भी साहित्य अकादमी अवार्ड विनर हैं उनको उनकी उपलब्धियों के लिए बहुत-बहुत मुबारक दी। और उन्होंने कहा कि जितने भी युवक युक्तियां हैं उनको इन से प्रेरणा लेनी चाहिए और उनको अपने कल्चर के साथ जुड़ना चाहिए और अपनी विरासत की जड़ों तक जाना चाहिए और अपने स्थानीय साहित्य के लिए काम करना चाहिए। गंगा शर्मा जी के बारे में बात करें तो 
उन्होने वर्ष 2011-2016 तक स्कूल शिक्षा विभाग और कॉलेज में संविदा व्याख्याता के रूप में काम किया और 2017 में वह डोगरी में सहायक प्रोफेसर के रूप में चुनी गयी जब उन्होंने जेकेपीएससी सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त किया।

यह उनके द्वारा लिखित दूसरी पुस्तक है जबकि उनकी पहली पुस्तक "डोगरी कोष विज्ञान" 2014 में प्रकाशित हुई थी। वह हीरा नगर के गांव पथवाल की रहने वाली हैं। उनका यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करना यह दर्शाता है कि हमारा जो युवा वर्ग है वह अभी भी अपनी विरासत के साथ अपनी भाषा के साथ जुड़ना चाहता है और उसको उभारने के लिए, उसको उसकी सही जगह दिलाने के लिए प्रयासरत है। गंगा शर्मा की यह उपलब्धि और लोगों को भी प्रेरित करेगी कि वह अपनी डोगरी विरासत को बचाने के लिए काम करें और डोगरी को उसका वो स्थान दिलाने की कोशिश करें जो कि  किसी जमाने में उसको प्राप्त था। आज अगर हम बात करें डोगरा विरासत की या डोगरा धरोहरों की या डोगरी भाषा की सब कुछ इतनी बुरी हालत मे है कि इनको देख कर दिल पसीज उठता है जो डोगरा विरासत है, धरोहर है वह उजड़ रही है और जो हमारा डोगरा कल्चर है उसकी पहचान धीरे-धीरे मिट  रही है। कुछ दिनों पहले ही टीम जम्मू के चेयरमैन जोरावर सिंह जमवाल ने डोगरा जनरल जोरावर सिंह की की धरोहर उनकी पुश्तैनी हवेली रियासी जिला में यहां वो रहते थे उस का मुद्दा उठाया था कि किस तरीके से बिल्कुल उजड़ चुकी है और काल के गर्त में समा सकती है। इसके अलावा जब हम ऐतिहासिक धरोहर पुरानी मंडी की बात करें, सांबा के किले की हालत देखे, सांबा में ही रानी समाधियां की तरफ नजर दौड़ाऐं, जसरोटा के किले की हालत देंखे तो आज मात्र उनके अवशेष ही बचे हैं। और डोगरी जो हमारी भाषा है वह जैसे कहीं लुप्तप्राय हो गई है। इसलिए गंगा शर्मा जी द्वारा यह पुरस्कार प्राप्त करना डोगरा विरासत को बचाने की दिशा में, डोगरी भाषा को उबारने की और फिर से हमारे लोगों का डोगरी भाषा में दिलचस्पी पैदा करने की दिशा में दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

संपादक

Sunday, March 14, 2021

क्या फ्लाईओवर खत्म कर सकता है सांबा की पहचान।


 जम्मू कश्मीर के जिला सांबा में इस वक्त फ्लाईओवर ब्रिज बनने के लिए जरूरी रिक्वायरमेंट के तहत यहां पर साइल टेस्टिंग का काम चल रहा है। जबसे डॉ जितेंद्र सिंह ने यह घोषणा की थी कि पठानकोट से लेकर जम्मू तक नेशनल हाईवे की सिक्स लेन का काम जल्द ही पूरा किया जाएगा, तब से ही लोगों में इस बात को लेकर बड़ी खुशी थी। सांबा का इलाका जैसा कि आप जानते हैं कि पंचवटी से लेकर आगे ढलान है और यह ढलान शिवा कोल्ड स्टोरेज के पास आकर खत्म होती है। यह सारा इलाका बहुत ज्यादा एक्सीडेंट प्रोन रहा है। यहां पर बहुत सारे एक्सीडेंट हुए हैं और बहुत सारी मौतें भी हुई है। महीने में कोई 10 बार यहां एक्सीडेंट होने की खबर मिली जाती है और पता चल जाता है कि फला फला नाम के व्यक्ति की मौत हो गई। क्योंकि यह सारा जो इलाका है यह बहुत ही यहां पर बहुत सारे एक्सीडेंट हुए हैं इसलिए लोगों की बड़ी देर से यह डिमांड थी कि इस समस्या का कोई स्थाई समाधान निकाला जाए। इसलिए शायद नेशनल हाईवे यहां पर फ्लाईओवर का निर्माण करवाने जा रही है जिसकी स्टाइल टेस्टिंग का काम अभी चल रहा है। लेकिन फ्लाईओवर के कंसेप्ट को अगर हम देखें तो यहां से भी फ्लाईओवर गुजरे हैं वहां के शहर की खूबसूरती ही खत्म हो गई है और वाणिज्यिक व्यवस्था में बहुत ज्यादा घाटा हुआ है जैसे कि हीरानगर और बड़ी ब्राह्मणा मैं हुआ। वहां की जो मार्केट थी वह भी फ्लाईओवर के कारण पूरी तरह से बेकार हो गई  लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह है उस जगह की पहचान की। यहां से यह फ्लाईओवर गुजरता है क्या उसकी पहचान भी फ्लाईओवर बनने के साथ खत्म हो जाती है? क्या विशिष्ट पहचान रहने के लिए लोगों का उस जगह पर रुकना जरूरी है।फ्लाईओवर के यहां फायदे हैं तो उसके नुकसान भी हैं एक तो जितना भी ट्रैफिक आएगा या जितनी भी गाड़ी आएगी वह फ्लाईओवर के ऊपर से ही चली जाएंगी। वह गाड़ियां शहर में नहीं रुकेंगी। इससे सांबा शहर की जो वाणिज्यक व्यवस्था है उसमें घाटा पड़ेगा। छोटे व्यापारियों खासकर रोड साइड बेंडर है जिनमें सांबा शहर के मशहूर पल्ले वाले, गन्ने का रस बेचने वाले उनकी आजीविका में फर्क पड़ सकता है और उनका कारोबार और पहचान खत्म हो सकती है जैसे नंदनी चैनल के पीछे यहां पर पनीर के पकोड़ेेे बनते थे उनके साथ हुआ या झज्जर कोटली टूरिस्ट स्पॉट के साथ हुआ। तो फिर समस्या का क्या हाल है सांबा में कितने एक्सीडेंट होते हैं उन से किस तरह बचाया जा सकता है। क्या इसका एक ही हल फ्लाईओवर है।  यहां पर फ्लाईओवर ही होना चाहिए यह जरूरी नहीं है अगर हम पीछे लखनपुर से आते देखे तो यह सारा रोड सिक्स लेन का हो रहा है और यहां सरकार को जरूरत पड़ी उन्होंने सड़क को चौड़ा करने के लिए वहां की जो आगे पीछे की मार्केट थी उसको तोड डाला और वहां पर से उन्होंने नेशनल हाइवे को चौड़ा किया। विकास के साथ एक खामियाजा तो भुगतना ही पड़ता है लेकिन सड़क का चौड़ा होना भी बहुत जरूरी है तो मेरे ख्याल में अगर सांबा शहर में फ्लाईओवर की जगह इस सड़क को चौड़ा किया जाए और सिक्स लेन में तब्दील किया जाए तो आने वाले हादसों से भी बचा जा सकता है और सांबा शहर की खूबसूरती भी खत्म नहीं होगी और जो वाणिज्यक व्यवस्था यहां पर बनी हुई है उसमें भी डाउनफॉल नहीं होगा। इसलिए हमारी तो यही राय है कि देकर अगर सांबा शहर को सड़कों को चौड़ा कर दिया जाए तो उससे  हमारे शहर की खूबसूरती बढ़ सकती है और एक बहुत ही अच्छा शहर बन सकता है और साथ ही साथ इसमें छोटे व्यापारियों का भी भला ही होगा और उनकी आजीविका का साधन खत्म नहीं होगा। आगे ही "शीटों वाले शहर" (Calico Printing) की हमारी पहचान लुप्त हो चुकी हैैै और अब कहीं कि "सांबा शहर के मशहूर पल्ले" वाली पहचान भी कहीं अतीत का हिस्सा ना बन जाये।

संपादक