Baba Shivo ka Darbar |
Story of Baba Shivo Ji
Jai Baba Shivo Ji
The place of Bava Shivo is in the village called Goran of Samba district. This place is 20 km from Samba bus stand on the Sumb-Goran road towards the northeast. Buses & matadors plied ever half an hour for this place every day & a fair is held here every Sunday and Tuesday and the Bhandara also runs every day. people from far and wide come here in thousands to express their grief and on getting rid of them offer pay offerings as well. Much fame is due to their justness and people do not get disappointed even on this subject.
People from far-flung mountainous regions also walk on foot to have glimpses of Baba Shivo ji who under huge banyan trees and other trees covered with Balungadi vines on the banks of cold drains are delightfully exists. people have HIS glimpses in rows. The People standing in a row speak loudly of Bawa ji and slowly move towards the main place and by going there, they will go back to their own heart and wish Baba ji to be aware of their problems and get them redressed.
A village named Goran resides on that side of this stream. The mountain range on which this village lies, the chain goes further away from the Khawwal villages towards a place called Dhawi. Towards the back of this beautiful mountain range are the villages named Sodham and Samotha. The original place of residence of Bava Ji was Garhsamotha. People here have full faith in Baba's justice.
Story Begins
This is the account of the time when the kingdom of Jammu was dominated by King Maldev. This king was very strong, devout and loved justice. It was the same king who picked up a big stone from Tavi river and established it in Jammu, which is still known as Kali Janni i.e. Kala Patthar. This king was also associated with the kings of Kashmir. He had a friendship with a prince named Labhddev. King Maldev invited them to come to Jammu and stay here and they also came here. Therefore, Maharaja Maldev handed over the hill kingdom to him. People used to call this king 'Laddha' with affection and started calling that whole hill range as 'Ladhe ki Dhar'. This king was Bhatial Rajput. His queen's name was 'Kalavati' but people also used to address him affectionately as Rani Kalli. King Ladha was a very justice-loving king and was very religious in nature, so people were very happy with him. The village of Sodham and its adjoining villages had a jagir over which Kharar Khatri was the suzerainty of the Rajput kings and this manor was also under the rule of Jammu. This vassal was very bloodthirsty and used to harass people and torture them. People were very unhappy with him. So some people gathered there and took the complaint of that vassal to Maharaj Maldev and prayed to Maharaja that he should be rid of that feudal lord. After receiving the full information from Maharaja, when he got the truth, he also handed over the entire estate to Labdhdev. Due to this, Kharar Khatris started hating towards Labhdev.
People were very happy with King Ladha. This king had no shortage of anything because Maharaja had a lot of grace on him. All of them had wealth, value and fame. But like scholars say that God does not always have something or the other. Therefore, despite everything, this king certainly had the grief of inferiority of children, which kept this king somewhat disappointed from inside. A child deprived of happiness and queen would sit alone and get depressed from this lack. A scholar advised him to do devotion to Guru Gorakh Nath Ji, that when Guru ji is pleased by doing this, then he will definitely have children. By obeying them, both the king and queen started this auspicious work by taking a fast of devotion to Guru Gorakhnath ji with great devotion and remained engaged in devotion for some years. Even after so many years, when his wish was not fulfilled, the king got upset and told the queen that what was the benefit of this devotion. Even after so many years, our wish is not fulfilled, so what is the belief that such a thing will be possible in future also? But Rani Kalli's devotion grew even more and she decided to do more rigorous penance and sacrificed food grains and made her body work even more.
When it was not even effected, the queen decided to do hard hatha yoga and called a blacksmith named Ranu and ordered him to make a nine-handed long iron cross. After a few days, Ranu made a cross according to Rani's orders and handed them to him. The queen started chanting Guru Gorakhnath's slogan, sitting on it and doing penance. All the people of the area were shocked at this harsh devotion of the queen and the devotion of everyone towards the queen increased even more. Everyone started praying to God for the success of devotion to the queen. As a result of this, the Tilla of Guru Gorakhnath began to tremble, so Guru Ji's penance got disturbed. When Guruji saw this whole incident with his yoga force, he understood the whole thing. He came to know that the queen of Garh Samotha is engrossed in her devotion.
To be continued:
बावा शिवो का स्थान जिला साम्बा के गोरन नामक गांव में है। यह स्थान साम्बा बस स्टैण्ड से उत्तर - पूर्व की ओर सुम्ब - गोरन सड़क पर यहां से 20 कि . मी . की दूरी पर गोरन नामक गांव के नाले के पूर्वी किनारे पर है | यहां प्रत्येक रविवार व मंगलवार को एक मेला सा लगता है तथा भण्डारा भी चलता है दूर - दूर से लोग हजारों की संख्या में यहाँ आकर अपने दुःख व्यक्त करते हैं और छुटकारा प्राप्त होने पर अपनी यथा शक्ति भेटे भी चढ़ाते हैं | अधिक प्रसिद्धि इनकी न्यायप्रियता के कारण है और लोग इस विषय पर भी निराश नहीं जाते |
दूर - दराज के पर्वतीय प्रदेशों से भी लोग पैदल विशाल बरगद के वृक्षों तथा बलूंगड़ी की बेलों से छाए दूसरे पेड़ों के नीचे।ठंडे नाले के किनारे स्थान हैं बावा जी का रमणीय स्थान है | जहां टोलियां बना कर लोग बैठे होते हैं | अन्दर अनाज के ढेर लगे होते हैं | एक पंक्ति में लोग खड़े बावा जी का जयकारा बोलते धीरे - धीरे मुख्य स्थान की ओर बढ़ते जाते हैं वहां माथा टेक कर अपने मन ही मन बाबा जी को अपने मन की मुरादें अथवा समस्याओं से अवगत करवा कर मनौतियां मान कर विभूती ले कर वापस जाते हैं । इस नाले के उस ओर गोरन नामक गांव बसता है | जिस पर्वत श्रृंखला पर यह गांव है , वह श्रृंखला दूर खव्वल गांवों से भी आगे ढावी नामक स्थान की ओर चली जाती है | इस सुन्दर पर्वत श्रृंखला की पीठ की ओर सोढ़म तथा समोठा नामक गांव हैं | बावा जी का मूल निवास स्थान गढ़समोठा ही था। यहां के लोगों को बाबा की न्यायप्रियता पर पूर्ण विश्वास है।
कथा आरम्भ
यह उस समय का वृतांत है जब जम्मू राज्य पर राजा मालदेव का आधिपत्य था | यह राजा बड़े ही बलशाली , भक्त तथा न्याय प्रिय थे | यह वही राजा थे जिन्होंने तवी नदी से एक बड़ा पत्थर उठा कर जम्मू में आकर स्थापित किया था , जिसे आज भी काली जन्नी अर्थात काला पत्थर के नाम से जाना जाता है | इस राजा का सम्बंध कश्मीर के राजाओं के साथ भी था | वहीं के एक राजकुमार से उनकी मित्रता थी जिसका नाम लब्धदेव था | उन्हें राजा मालदेव ने जम्मू आने तथा यहीं रहने का न्यौता दिया और वे यहां आ भी गए | अतः महाराज मालदेव ने उन्हें ऊपर पहाड़ी राज्य सौंप दिया | इस राजा को लोग प्यार से ' लद्धा ' कहते थे और उस सारी पहाड़ी श्रृंखला को ' लद्धे की धार ' कहने लगे | यह राजा भटियाल राजपूत था | इनकी रानी का नाम ' कलावती ' था किंतु इन्हें भी लोग प्यार से रानी कल्ली कह कर सम्बोधन करते थे । राजा लद्धा एक बड़े ही न्याय प्रिय राजा थे तथा बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे , इसलिए लोग उनसे अति प्रसन्न थे । सोढ़म गांव तथा उसके आस पास के गांवों को मिला कर एक जागीर थी जिस पर खरड़ खत्री राजपूत राजाओं का अधिपत्य था और यह जागीर भी जम्मू के राज्य के अधीन थी । यह जागीरदार बड़ा जालिम था और लोगों को बहुत तंग करता था तथा उन पर अत्याचार करता था | लोग उससे बहुत दुखी थे | अतः वहां के कुछ लोग इकट्ठे हो कर महाराज मालदेव के पास उस जागीरदार की शिकायत ले कर गए तथा महाराज से प्रार्थना की कि उस सामंत से उन्हें छुटकारा दिलाया जाए | महाराज ने पूरी जानकारी प्राप्त करने के पश्चात जब यह बात सत्य पाई तो वो पूरी जागीर भी लब्धदेव को सौंप दी | इस कारण खरड़ खत्री लब्धदेव के प्रति बैर भाव रखने लगे |
राजा लद्धा से लोग अति प्रसन्न थे | इस राजा के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी क्योंकि महाराज की इन पर काफी कृपा थी । धन , मान तथा यश सभी इनके पास था | मगर जैसे विद्वान लोग कहते हैं न कि ईश्वर सभी मेकुछ न कुछ अभाव अवश्य रख देता है । अतः इस राजा के पास सब कुछ होते हुए भी संतान हीनता का दुख अवश्य था , जो इस राजा को भीतर से कुछ खिन्न सा रखता था | संतान सुख से वंचित राजा - रानी अकेले बैठ कर इस अभाव से उदास हो जाते । किसी विद्वान ने उन्हें गुरु गोरख नाथ जी की भक्ति करने की सलाह दी कि ऐसा करने से जब गुरु जी प्रसन्न होंगे तो उनके अवश्य ही संतान होगी । उनकी बात मान कर राजा - रानी दोनों ने बड़ी श्रद्धा से गुरु गोरखनाथ जी की भक्ति का व्रत लेकर यह शुभ कार्य आरम्भ किया और कुछ वर्षों तक भक्ति में संलग्न रहे | इतने वर्षों के पश्चात भी जब उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई तो राजा ने खिन्न हो कर रानी से कहा कि क्या लाभ हुआ इस भक्ति से | इतने वर्षों के बाद भी हमारी इच्छा पूर्ण नहीं हुई तो अब क्या विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा सम्भव हो सकेगा | किंतु रानी कल्ली की श्रद्धा और भी बढ़ गई और उन्होंने और भी कठोर तप करने का निश्चय किया तथा अन्न जल का त्याग करके अपनी काया को और भी कृष कर लिया |
जब इसका भी प्रभाव नहीं हुआ तब रानी ने कठोर हठयोग का निश्चय करके रानू नामक लोहार को बुला कर एक नौ हाथ लम्बी लोहे की सूली बना कर लाने का हुक्म दिया | कुछ दिनों के पश्चात रानू ने रानी के हुक्मानुसार सूली बना कर उन्हें सौंप दी | रानी ने गुरु गोरखनाथ की जय का नारा लगा कर उस पर बैठ कर तपस्या करना आरम्भ कर दिया | क्षेत्र की सारी जनता रानी की इस कठोर भक्ति पर स्तब्ध थी तथा रानी के प्रति सभी का भक्ति भाव और भी बढ़ गया | सभी लोग रानी की भक्ति की सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगे | इसका फल यह हुआ कि गुरु गोरखनाथ का टिल्ला काँपने लगा तो गुरु जी की तपस्या भंग हुई । गुरु जी ने इस सारी घटना को अपने योग बल से देखा तो उन्हें पूरी बात समझ में आ गई | उन्हें पता चल गया कि गढ़ समोठा की रानी उनकी भक्ति में कितनी तल्लीन है।
आगे है।
Story help is taken from the book of Prof. Dr. Jagdeep Singh of Mandi Kheri on Baba Shivo Ji
Jai Baba Shivo Ji
ReplyDeleteIt was wondering if I could use this write-up on my other website, I will link it back to your website though.Great Thanks. Online cake delivery in Delhi
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