Sunday, March 20, 2022

क्या कश्मीर फाइल्स की तरह द जम्मू फाइल्स भी बन पाएगी ???

 


इस वक्त फिल्म द कश्मीर फाइल्स बहुत ही चर्चाओं में है। 1990 के दशक की घटनाओं पर आधारित इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों का विस्थापन और उन पर हुए अत्याचारों का दर्द दर्शाया गया है। कश्मीर फाइल से सियासी पारा भी गर्म हो गया है और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। किस तरीके से उस समय की सरकारों ने अपनी आंखें मूंद के रखी और किस तरीके से इतना बड़ा विस्थापन, पलायन लोगों की नजरों से छुपाया गया और जो अत्याचार हुए थे वह कभी सामने नहीं लाये गये और ना ही जिन्होंने यह अत्याचार किए थे उन पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई हुई। यहां तक कि उस वक्त के प्रधानमंत्री ने इन निर्दोष लोगों के हत्यारों के साथ मिलना बेहतर समझा। इसके चलते चलते हम आपको यह बता दें कि जम्मू-कश्मीर में फैले आतंकवाद का दंश जितना कश्मीर के लोगों ने सहा है तकरीबन उतना ही दंश जम्मू के लोगों ने भी सहा है। अगर हम जम्मू के लोगों की, जम्मू क्षेत्र की बात करें तो हम यह देखते हैं कि 2006 में कुल्हंद और थावा गांव जोकी डोडा डिस्ट्रिक्ट में पडते थे और लालों गाला जो कि उधमपुर डिस्ट्रिक्ट में था वहां पर 30 अप्रैल ( मई 1)  को दो नरसंहार हुए थे जिसमें 35 लोगों की जानें गई थी। कुल्हंद और थावां में 22 लोगों को मौत के घाट उतारा गया था और लालों गाला उधमपुर में 13 हिंदुओं को। लालों गालो में जो हिंदू मारे गए थे वह सिर्फ गडरिये थे कहते हैं जो डॉक्टर वहां पर भेजा गया था, वहां का खौफनाक मंजर देख कर उसे दिल का दौरा पड़ गया था और वह खुद खुद बीमार हो गया था।

 

Kulhand, Thawa Attack Doda

इसके बाद अगर हम बड़े बड़े नरसंहारों की बात करें तो कासिमपुरा जम्मू में जुलाई 13 2002 को 28 लोग मारे गए थे और कालूचक आर्मी कैंप पर जो मई 14 को हमला हुआ था उसमें 36 लोग 2002 में मारे गए थे। 

Kaluchak Military Station Attack

 

इसके अलावा अगर हम बात करें तो 2002 में ही निराला राजौरी में 8 लोग, बहरा पुंछ में 11,  लड्डू और रामसू गांव डोडा में 6 लोग मारे गए थे। 2001 में मैग्नेर टाप पुंछ में आतंकवादियों ने 6 लोगों को मार डाला था और कांथा राजौरी में 4 लोग दिसंबर 30 को और 2001 में तरिंगल और गयलोत उधमपुर में 14 लोग मारे गए।  2001 में ही महरोत और डुंडक पुंछ में अगस्त 27 को 7 और विलेज किश्तवाड़ में अगस्त 3 को 17 लोग आंतकवादियों द्वारा मार दिये गए यह सभी लोग हिंदू ही थे। इसी तरह अगर हम 2001 की ही बात करें तो सहर बुधौली उधमपुर में अगस्त 15 को 7, जम्मू रेलवे स्टेशन पर आंतकवादी हमले में 7 अगस्त को  11 और श्रोतीदार डोडा में 2 अगस्त में 15 और मेहर और सलोनी राजोरी में फरवरी 15 को 15 लोग मार दिये गए। इसी तरह से तेजोड मे 4 और जुलाई 22 को  चेरजी डोडा मे 14 लोग मार दिए गए।

Jammu Railway Station Attack

 2002 के नरसंहारों की अगर हम बात करें तो टाली मोहल्ला डोडा में 5, शेर बीवी डोडा में नवंबर 21 को 5, केयर डोडा में अगस्त 2 को 8, पोंगल परिस्तान में अगस्त 2 को 14 लोग मार दिये गये। इससे पहले आतंकवादियों ने 1999 में गांव थातरी  डोडा में जुलाई 20 को 15 लोगों का कत्ल कर दिया और चंबा डिस्ट्रिक्ट में 1998 को 35 निर्दोष दिहाड़ीदारों को मार दिया। 1998 में ही छन्ना थकराल गांव डोडा में आतंकवादियों ने 16 लोगों को और चंपानेरी डोडा में 26 लोगों का नरसंहार कर दिया था। प्रानकोट और डलकीकोट उघमपुर में 21 अप्रैल को 26 लोगों को मार गिराया गया और थब विलेज उधमपुर में अगस्त 19 को 13 और वर्षाला डोडा में 1996 को 16 लोगों को मार दिया गया। 

Doda Killings

इस तरह से यह सारे नरसंहार जम्मू क्षेत्र में हुए अगर हम जम्मू कश्मीर के 2006 से पहले हुए नरसंहारों की बात करें  तो लगभग 40 के लगभग नरसंहार 2006 से पहले पहले हुए जिसमें 29 अकेले जम्मू क्षेत्र में ही हुए। जम्मू क्षेत्र में इस तरह से हुए नरसंहारों का जिक्र तो है लेकिन क्या उन लोगों को इंसाफ मिल पाया इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। और इन सब नरसंहारों के कारण जो विस्थापन वहां से हिंदू लोगों का हुआ उसको भी आज तक किसी ने सही तरीके से दर्शाया नहीं है, ना ही इसके बारे में लोगों को सही ढंग से पता है। इन सब चीजों को देखते हुए एक बात सामने आती है कि जिस तरह से विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कश्मीरी लोगों की पीड़ा को समझते हुए उनके दर्द को पर्दे पर उतारा तो क्या कोई ऐसा निर्देशक लेखक भी होगा जो जम्मू क्षेत्र में हुए नरसंहारों का दर्द पर्दे पर उतार सके और जम्मू के लोगों के साथ हुई अत्याचार और पीड़ा को पूरी दुनिया को दिखा सके।

No comments:

Post a Comment