जैसा कि हम अपने मीडिया के माध्यम से लगातार आपको बताते हैं कि किस तरह से सुंब एरिया के दूरदराज और पिछड़े हुए गांव जिनमें जीड नंड हंड्रड बेलिया सूर मंसूर आदी है उनका जीवन किस तरह से दूभर है और कितनी विपत्तियों का सामना करके वह आज भी इस आधुनिक युग में आदिम युगीन सभ्यता में जी रहे हैं। इन लोगों को ना कोई सड़क की सुविधा है नाही पानी की और बिजली की। हालांकि कहीं-कहीं यह सुविधा उपलब्ध है लेकिन पानी की किल्लत का इनको बहुत ही सामना करना पड़ता है कई बार हमने आपको बताया कि किस तरह से लोग गंदे तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं और कई बार वह पहाड़ी उतरकर बसंतर दरिया का पानी लेकर ऊपर जाते हैं इस तरह से दो-तीन किलोमीटर का सफर रोज का पानी लेने में ही व्यतीत हो जाता है और अगर इस इलाके में सड़क सुविधा ना होने के कारण अगर कोई बीमार हो जाता है तो उसको वहां से सुंब हॉस्पिटल तक लाने के लिए वहंगी पालकी या घोड़े खच्चर का ही इस्तेमाल होता है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने हालांकि लोगों को बड़ी राहत पहुंचाई है लेकिन इस इलाके में अभी तक इस सुविधा का उनको कोई सहारा नहीं मिला है। इससे पहले भी कई बार लोग समय पर इलाज ना होने के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। जिनमें बच्चा पैदा होने वाली मायें या सांप डसने के कारण या कच्ची दीवार गिर जाने के कारण हुई मौतें शामिल है। अभी कल की ही बात करें तो जीड गांव के बलवान सिंह जी की पत्नी रात एक 1:30 बजे के करीब बीमार हो गई अब उनको वहां से अस्पताल लाने के लिए किस तरह का कोई साधन नहीं था तो उनको पालकी में डालकर सुब अस्पताल तक लेकर आना पड़ा और अगर हम यह बात करें कि किस तरह के रात के अंधेरे में बोलो अस्पताल में पहुंचे और किस तरह से धक्के खाते हुए उन्होंने दरिया बसंतर पार करके किस तरह से है पहाड़ चढ़कर (यहां पर बिजली का कोई प्रबंध नहीं था) किस तरह से वह पहुंचे होंगे तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस आधुनिक युग में भी लोग ऐसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमने अपने मीडिया के माध्यम से कई बार प्रशासन के आगे गुहार लगाई है सुंब क्षेत्र की समस्याओं को उठाने के लिए तो एक बार हमारा फिर से प्रशासन से यह अनुरोध है कि किसी तरह से इनको प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लाभ दिया जाए और इस तरह से होने वाली दुर्घटनाओं में जिसमें अकाल मृत्यु हो सकती है उससे इन लोगों को बचाया जाए।
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