अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित बाबा दलीप सिंह मन्हास की स्माधि पर लगने वाला यह ऐतिहासिक मेला लगभग 300 साल पुराना है। आजादी से पहले मनाए जा रहे इस मेले में कुछ दशक पहले तक सीमा के दोनों ओर, यानि भारत और पाकिस्तान के श्रद्धालू भाग लेते थे। 80 के दशक में सीमा पार से घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियाँ बढऩे के बाद सरहद पर बीएसएफ द्वारा तारबंदी कर दी गई और इसमें पाक श्रद्धालुओं का आना बंद हो गए। लेकिन तमाम कड़वाहटों के बावजूद पाक रेंजर्स हर साल जीरो लाईन पर बाबा के लिए चादर लेकर पहुंचते थे और बदले में बीएसएफ द्वारा उन्हें स्माधिस्थल की पवित्र मिट्टी (शक्कर) और पानी (शर्बत) भेंट किया जाता था मेले के दिन जीरो लाईन पर उत्साह और सौहार्दपूर्ण वातावरण में होने वाली फ्लैग मीटिंग में बीएसएफ अधिकारी औ रेंजर्स भी गर्मजोशी से मिलते थे और उपहारों का आदान-प्रदान होता था लेकिन कोरोना संकट के चलते इस बार ऐसी संभावना नहीं है। इससे पहले 2018 में मेले से ठीक पहले पाक द्वारा बीएसएफ दस्ते पर हमले के चलते जीरो लाईन पर चादर और शक्कर-शर्बत का आदान-प्रदासन नहीं हुआ था।
चमलियाल मेला कमेटी के प्रधान बिल्लू चौधरी ने बताया कि जिला साम्बा की ओर से यह निर्देश मिला है कि कोरोना वायरस के चलते इस बार का मेला वार्षिक मेले को रद्द किया जाए गया। और दरगह पर चादर ओढ़ने की रस्म अदा की जाएगी। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद गांववासी सांकेतिक रूप से मेला मनाएंगे और कमेटी सदस्य परंपरागत रूप से स्माधिस्थल पर पूजा-अर्चना करेंगे व लाकडाउन के तमाम नियमों का पालन करते हुए चादर भी चढ़ाएंगे। फिलहाल प्रशासन के आदेश पर स्माधिस्थल पर ताला लगाया गया है।
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चमलियाल मेला कमेटी के प्रधान बिल्लू चौधरी ने बताया कि जिला साम्बा की ओर से यह निर्देश मिला है कि कोरोना वायरस के चलते इस बार का मेला वार्षिक मेले को रद्द किया जाए गया। और दरगह पर चादर ओढ़ने की रस्म अदा की जाएगी। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद गांववासी सांकेतिक रूप से मेला मनाएंगे और कमेटी सदस्य परंपरागत रूप से स्माधिस्थल पर पूजा-अर्चना करेंगे व लाकडाउन के तमाम नियमों का पालन करते हुए चादर भी चढ़ाएंगे। फिलहाल प्रशासन के आदेश पर स्माधिस्थल पर ताला लगाया गया है।
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